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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

यक्ष प्रश्न  - 3 : इकोनॉमी वारियर्स 


यक्ष प्रश्न  - 3


इकोनॉमी वारियर्स


यह हास्य व्यंग्य कोरोना काल के प्रथम लॉकडाउन के समय का है । इसे उसी परिप्रेक्ष्य में पढें ।

लॉकडाउन में मैं और श्रीमती जी । एक दूसरे को देखते , बतियाते , प्यार करते, तकरार करते, लड़ते और झगड़ते रहते थे दिन भर । और कोई काम भी नहीं था ना । इस मौके का फायदा उठाकर श्रीमती जी ने हमें झाड़ू पोंछा करना, बर्तन साफ करना, खाना बनाना वगैरह सब काम सिखा दिया । अब घर की जिम्मेदारी शिफ्ट हो गई । उनका काम अब मीन में निकालने का हो गया था । मनुष्य को बहुत सारी बातें कहां समझ में आती हैं ? जब कुदरत का डंडा पड़ता है तब आदमी कुछ कुछ सीखता है । यदि हम लोगों ने घर की लक्ष्मी का सम्मान किया होता , उसकी भावनाओं से खिलवाड़ ना किया होता तो क्या कोरोना को आना पड़ता ? शायद पुरुषों के दंभ, उद्दंडता, शोषण की प्रवृत्ति, मनमानियों  के कारण ही कोरोना ने अपना विकराल रूप दिखाया और संदेश दिया "रे मनुष्य,  वक्त है , अभी भी संभल जा । तू जो कुदरत के साथ खिलवाड़ कर रहा है , ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना 'स्त्री' को 'खिलौना' समझ कर उसको कुचल रहा है , यह ठीक नहीं है । अब सुधर जा नहीं तो फिर तबाही का वो मंजर आयेगा जो सब कुछ बहाकर ले जायेगा" । कोरोना काल में आदमी को कुछ कुछ "शमशानिया वैराग्य" हुआ था मगर अब फिर से अपनी मूल वृत्ति में आ गया है ।

एक दिन जैसे

ही मैंने अपना लंच समाप्त किया , श्रीमती जी ने कहा कि घर में आटा , दाल वगैरह सब खत्म हो चुका है । यदि डिनर करना है तो आज ही ये सब लाने पड़ेंगे अन्यथा आज उपवास करना होगा । श्रीमती जी ने अल्टीमेटम दे दिया था । अब कोई विकल्प बचा ही नहीं था ।  उपवास के नाम से ही मेरे तो पेट में मरोड़ उठने लग गये ।


मरता क्या न करता वाली कहावत को आदर्श वाक्य मानकर भरी दोपहरी में ही हम एक झोला लेकर निकल पड़े किराने की दुकान की ओर । जीवन में दो चीजें बड़ी कष्टप्रद होती हैं । एक तो गर्मियों में भरी दोपहरी में घर से बाहर पैदल निकलना और दूसरा किसी औरत का भरी जवानी में विधवा होना । हम पहली वाली श्रेणी में थे । सो , आटा दाल लिये बिना ही चिलचिलाती धूप में उसका भाव पता चल गया था ।


अभी मैं घर से बाहर निकला ही था कि रास्ते में हंसमुख लाल जी मिल गये । हंसमुख लाल जी हमारे घुटन्ना मित्र हैं । घुटन्ना मित्र माने जबसे हम "घुटन्ना" पहनने लगे थे तब से मित्र हैं । वे बड़े दुखी लग रहे थे । जब उनसे कारण पूछा तो वे बोले। "भाईसाहब , इस कोरोना से मुक्ति का कोई मार्ग नजर नहीं आ रहा है इसीलिए मैं चिंतित हूं । आप तो बहुत ज्ञानी ध्यानी व्यक्ति हैं , आप ही कुछ बताइएन" ?


मैंने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि भारत के लोगों पर भरोसा रखो । भारत के लोग बड़े जुगाड़ू हैं , वे कोई न कोई जुगाड़ तो कर ही लेंगे । अरे, जब वे जुगाड़ से महाराष्ट्र में सरकार चला सकते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं । मेरी बातों से सहमत होने पर उन्होंने चैन की सांस ली । उन्हें भारतीयों की असीमित प्रतिभा पर फिर से विश्वास हो गया और वो मेरे साथ आटे दाल का भाव जानने चल दिये ।


हम लोग अभी थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि हमें सड़क के किनारे किनारे दो व्यक्ति जमीन पर पड़े हुए मिले । भू लुंठित । दोनों व्यक्ति बेसुध होकर चित्त पड़े हुए थे । थोड़ा और आगे बढ़े तो वहां पर दो चार युवतियां भी औंधे मुंह पड़ी हुई थी । उन्हें इस हालत में देखकर हंसमुख लाल जी बड़े अचंभित हुए और बोले

"भाईसाहब, ये क्या माजरा है" ?


मैं भी इस नजारे को देखकर चौका अवश्य ।  मगर तुरंत ही समझ गया कि ये लोग "मधुशाला" होकर आ रहे हैं । हरिवंशराय बच्चन जी सबको सुखी रहने का मंत्र पकड़ा गये हैं तो लोग उस मंत्र को "जीवन जीने की कला" मानकर रोज मधुशाला जाकर कुछ घूंट हलक में डालकर सुखी हो रहे हैं । 

मैंने कहा , "ये दुनिया के सबसे सुखी इंसान हैं " ।


वो बोले "वो कैसे" ? आश्चर्य से उन्होंने मुझे देखा ।


मैं बोला "आपको दिन में चैन की नींद आती है"?


मेरे इस अजीब से प्रश्न पर आश्चर्य से उन्होंने मुझे घूरते हुए कहा, "दिन की बात तो छोड़ो, रात में भी कहां आती है चैन की नींद ? कोरोना की दहशत से रात की नींद और दिन का चैन दोनों हराम हो गये हैं" । और उन्होंने कोरोना को पचासों गालियां निकाल दीं ।


मैंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा , "अगर कोई इंसान भरी दोपहरी में बीच सड़क पर इस तरह घोड़े बेच कर सोये तो क्या वो दुनिया का सबसे सुखी इंसान नहीं है" ?


मेरी बात में बहुत वजन था इसलिए वे अब मेरा लोहा मान गये थे । आगे बोले


"लेकिन ये अपने घरों के बजाय यहां क्यों सो रहे हैं" ?


मैंने कहा ," सो कौन रहा है ? ये तो स्वर्ग लोक की सैर पर हैं । स्वर्ग लोक की सैर के बीच ही निद्रा देवी इन पर इतनी मेहरबान हो गई कि घर पहुंचने से पूर्व ही इनको बीच सड़क पर  दबोच लिया । ये बेचारे क्या करते ? उसकी गोदी में सो गये "।


"पर भाईसाहब, इनको नींद कैसे आ जाती है ? हम तो रात भर करवटें ही बदलते रहते हैं पर नींद है कि आने का नाम ही नहीं लेती है । एक तो कोरोना की दहशत और उस पर ये भीषण गर्मी । कोई सो कैसे सकता है, भला" ?


मैंने कहा,"यही तो कलाकारी है भैया । इसके पीछे सोम रस है भैया सोम रस । ये उसी पवित्र पेय का प्रभाव है । सरकार के आदेश से कल से सोम रस के सभी पवित्र स्थल "मधुशाला" खुल गये हैं और ये सब 'पुजारी' वहां जाकर "पूजा अर्चना" करके जी भरकर 'प्रसाद' ग्रहण कर आ ही रहे थे कि भरी दोपहरी में बीच सड़क पर ही निद्रा देवी ने इन पर धावा बोल दिया और ये बेचारे निद्रा देवी  की भेंट चढ़ गये" ।


थोड़े आश्चर्य के साथ

लड़कियों की ओर ध्यान से देखकर वो बोले, "क्या ये लड़कियां भी सुरा पान करके आ रही थीं " ?


"छि छि छि । कौन जमाने की बात कर रहे हो भैया हंसमुख लाल ? अब नया जमाना है । अब ये "सुरापान" नहीं कहलाता बल्कि "ऐनर्जी ड्रिंक" कहलाता है और इस आधुनिक भारत में नारियां तो पुरुषों से दो कदम आगे हैं, पीछे नहीं । जब हर क्षेत्र में स्त्री पुरुषों के मुकाबले आगे निकल रही हैं तो पीने के मामलों में भला  पीछे क्यों रहें वे" ? 


उन्होंने मन ही मन नारी जाति को सादर प्रणाम किया और देश के उज्जवल भविष्य पर हर्षाते हुए वे कहने लगे।


"जिस देश में ऐसे मद्य प्रेमी पुरुष और सुरा प्रेमी नारियां रहतीं हो , उसका पाकिस्तान तो क्या चीन भी बाल बांका नहीं कर सकता है" ।


हम लोग आगे बढ़ने ही वाले थे कि एक "कुक्कुर देव" (कुत्ता)  वहां प्रगट हुए और उपयुक्त स्थान देख कर एक टांग उठाकर एक लुढ़के हुए सज्जन के मुंह पर "अमृत वर्षा" करने लगे । वो सज्जन सुरा के नशे में तो थे ही इसलिए इस "जल जैसी चीज" को अमृत वर्षा समझ कर "अमृत पान" करते रहे और अमरत्व को प्राप्त हो गए । अपना काम समाप्त कर कुक्कर देव भी वहां से प्रस्थान कर  गये ।


हंसमुख लाल जी उस अद्भुत दृश्य को देखकर गदगद हो गए और उन्होंने उन सज्जन की सात परिक्रमा कर अपने को कृतार्थ कर लिया । बोले


"सरकार इन पियक्कड़ों का कुछ करती क्यों नहीं है" ?


मैंने कहा , "ये सब सरकार की ही तो देन‌ हैं । अगर वो मदिरालय जैसे पवित्र स्थल नहीं खुलवाती तो ये पुजारी वहां पर "पूजा" करने नहीं जाते और "प्रसाद" ग्रहण भी नहीं करते । ये इंसान नही देवदूत हैं वत्स । इनका तिरस्कार मत करो बल्कि इन्हें आदर से प्रणाम करो " ।


वो चौंके। बोले


"आप मुझे इन नशेड़ियों को प्रणाम करने को क्यों कह रहे हैं , गुरुदेव " ?


"शशश। इन्हें नशेड़ी मत कहो वत्स । इन्हें इकोनॉमी वारियर्स कहो । कोरोना के कारण देश की अर्थव्यवस्था आज रसातल में चली गई है जिसको वापस लाने के लिए इन जैसे दिव्य पुरुषों ने भगवान वराह की तरह अवतार धारण किया है और देश की अर्थव्यवस्था को रसातल से निकालने का भीषण कार्य कर रहे हैं । इसलिए इन सब "मद्य" अवतारियों को प्रणाम करो वत्स । इनके दर्शन दुर्लभ हैं वत्स,  ऐसा श्रेष्ठ अवसर बार बार नहीं आता है"।


और उन्होंने उन सभी सुरा प्रेमी देवी देवताओं को बारी बारी से प्रणाम किया ।


आगे बढ़ते हुए वे बोले " क्या अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक करने के लिए केवल मदिरालय खोलना ही पर्याप्त हैं" ?


मैंने कहा , "ठीक प्रश्न किया है आपने । वाकई , इसके अलावा सरकार को कुछ और कदम भी उठाने होंगे । गुटखा , पान मसाला , खैनी जैसे दिव्य पदार्थों के गुणीजन भी बहुत हैं इस देश में । पांच रुपए की पुड़िया पचास में खरीद रहे हैं लोग आजकल । सरकार को चाहिए कि उनको भी खोल दे । आम के आम और गुठलियों के दाम । जिस तरह ये सुरा प्रेमी सरकर को आशीर्वाद दे रहे हैं उसी तरह ये गुटखा प्रेमी भी आशीर्वाद देंगे सरकार को" ।


वो बोले , "क्या इतना पर्याप्त है " ?


मैंने कहा " नहीं , इतना पर्याप्तनहीं है । पर गुटखा, पान मसाला  आदि "दिव्य" पदार्थों से पर्याप्त राजस्व की प्राप्ति होगी । इसके अतिरिक्त सरकार को गोलगप्पे की दुकानों एवं ब्यूटी पार्लर्स को भी खोल देना चाहिए । नारियों ने डेढ महीने से अपना ना तो अपना मेकअप करवाया है और ना ही गोलगप्पे खाये हैं । गोलगप्पे खाने के लिए उनकी आत्मा बुरी तरह से भटक रही है । अगर ये दोनों चीजें भी खोल देंगे तो प्रचुर मात्रा में पैसा भी आयेगा और लोग खुश भी होंगे । इन सब उपायों से वोट बैंक के साथ साथ राजस्व भी बढ़ेगा । इसकी गारंटी मैं देता हूॅ" ।


वो बोले , "भाईसाहब । आप जैसे विद्वानों को तो सरकार में बड़े पद पर होना चाहिए था" ।


मैंने कहा , "भैया ये कलयुग है । यहां विद्वानों की नहीं , चापलूसों की कद्र होती है । विद्वान लोग तो ताली बजाने का कार्य करते हैं ।  हम भी यही काम करें । आओ । हम लोग इन इकोनॉमी वारियर्स के सम्मान में खड़े होकर जोर से तालियां बजायें "।


हम दोनों मित्र वहां खड़े होकर इन सुरा प्रेमी इकॉनोमिक वारियर्स के सम्मान में  तालियां बजाने लगे। हमारी देखा देखी और लोग भी इन इकोनॉमी वारियर्स के सम्मान में तालियां बजाने लगे । ऊपर आसमान से भी पुष्प वर्षा होने लगी । हम आश्चर्य से ऊपर देखने लगे कि क्या देवता गण भी प्रसन्न होकर पुष्प वर्षा कर रहे हैं  ?


पर हमारा अनुमान गलत निकला ।

मालूम हुआ कि सरकार ने इन इकोनॉमी वारियर्स के सम्मान में हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा करवाई है । आखिर सरकार को मुसीबत से जो उबारा है इन्होंने । तो इतनी जिम्मेदारी तो सरकार की बनती है भाई" ।


इस पुष्प वर्षा से

हम लोग धन्य हो गये और किराने का सामान लेकर घर आ गए । 




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4 Comments

Gunjan Kamal

23-Sep-2022 08:45 AM

शानदार

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दशला माथुर

20-Sep-2022 12:56 PM

Very nice 👍

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shweta soni

20-Sep-2022 12:20 AM

Very nice 👍

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